कविता.. बसंत !

बसंत आयो री सखी!  
------------------------------   "सरताज उन्मादी                     बसंत आयो
री सखी!
नवपत्र-नवकुसुम
नवकलियाँ लदी
री सखी!
कोपलें-कोमल
खिली-खिली
वृक्षों पर फल
मधुर पके
री सखी!
कोयल की कूक
बया की तान
मीठी छिड़ी
री सखी!
आसमानी चादर ओढ़
पीली बसंती  ईतरायी
री सखी!
उन्मादी बसंत देख
प्रकृति शरमायी
री सखी!
गुलाब चमेली गेंदा
हवा संग नाची
री सखी!
सरसों और जौ
लहलहाती बाली
री सखी!
किसान का जोश
उमंग तरंगित
री सखी!
सरताज बसंत
उन्मादी आयो
री सखी!"शैली"
वंदनागोपाल शर्मा"शैली"
२२.०१.२०१८

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